बैंगन का लघु पत्र अथवा
छोटी पत्ती रोग (Little
Leaf of Brinjal)
यह रोग सम्पूर्ण भारत एवं श्री लंका में पाया जाता है भारत में
इस रोग को 1939 में थामस और
कृष्णा द्वारा सर्वप्रथम कोयम्बटूर में देखा गया था जो अब भारत के सभी राज्यों में
इस फसल पर पाया
जाता है।
Host- Solanum mélange
Pathogen- Mycoplasma Like Organism (Phytoplasma)
वर्मा एवं साथियों ने 1969 में इस रोग का लक्षण MLB बताया तो गोल से अण्डकार (Ovoid
to Spheroid) तथा 40 से 300 nm नाप वाले होते हैं। इस प्रकार यह रोग माइकोप्लाज्मा
द्वारा होता है न कि वायरस द्वारा जैसा कि पहले समझा जाता था।
लक्षण (symptoms’) -
इस रोग के प्रमुख लक्षण पत्तियों का
अत्यधिक छोटा रह जाना होता है। ये पृत्तियाँ छोटी तथा तने से चिपकी दिखाई देती हैं
क्योंकि इनके वृत्त भी छोटे हो जाते हैं। नयी पत्तियों का आकर और भी घट जाता है।
ये सभी पत्तियाँ पीली, चिकनी तथा नरम होती हैं तनें की पर्व (Internodes) भी छोटी हो जाती हैं एवं कक्षीय कलिकायें बढ़ने लगती
हैं जिनके वृन्त एवं पत्तियाँ भी छोटी होती हैं जिस कारण पौधा बौना एवं झाड़ी जैसा
हो जाता है। रोगी पोधों पर फूल तथा फल नहीं बनते और बनते भी है तो हेरे बने रहते
हैं। अधिक संक्रमित पौधों में फूल एवं फल नगण्य होते हैं जबकि Virscent
तथा Phylloid पुष्प
सामान्यतया पाये जाते हैं। रोग कारक (Pathogen) पुलोएम (Phloem) में सीमित रहता है तथा सम्भवतया खनिजों के संवहन में व्यवधान उत्पन्न करता है।
प्रसार (Transmission)
- इस रोग के वाहक Cestins phycitis,
Hishmonus phycitis आदि
कीट होते हैं जो इनका प्रसार करते हैं।
करेला, टिन्डा,
तरबूज, सनई, गाजर, मेथी,
एवं कटेली (Solanum
xanthocarpum) इत्यादि पौधे
रोगवाहक कीटों के परपोषी तथा सोयाबीन, अरण्डी, चुकन्दर एवं
चीनीपोडियम ऐमेरेन्टिकलर (Chenponodium amaranticolor) आदि पौधें रोग वाहक कीटों के अण्डनिपेक्षण (Oviposition) परपोषी होते हैं।
नियन्त्रण (Control) -
(१) खेत में रागी
पौधें दिखाई देते ही उखाड़कर जला देने चाहिये।
2) खेत में उपस्थित रोग ग्राही खरपतवार एवं परपोषियों को
नष्ट कर देना चाहिये।
(3) रोग वाहक कीटों को विभिन्न रसायनों द्वारा नियन्त्रित
किया जाना चाहिये।
4) एन्जायेलू एवं रामाकृष्णन तथा वर्मा एवं साथियों के
अनुसार टैट्रासाइक्लिन द्वारा इस रोग को प्रभावी ढंग से नियन्त्रित किया जा सकता
है।
(5) बैनेमाइल तथा टैट्रासाइक्लिन को मिलाकर प्रयोग करने
से माइकोप्लाज्मा को नियन्त्रित किया जा सकता है। Lenedermycin
500ppm. घोल भी प्रभावी होता है।
(6) रोग रोधी किस्मों को उगाना भी आवश्यक है। जैसे - H8,
BWR-12 एवं BB-7 आदि।
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